खाने की नली के कैंसर को एसोफैगल कैंसर के रूप में भी जाना जाता है। यह खाने की नली या ग्रासनली जिसे एसोफैगस कहा जाता है में विकसित होता है। खाना एसोफैगस के माध्यम से ही पेट में पचने के लिए पहुंचता है। आमतौर पर एसोफैगल कैंसर उन कोशिकाओं में विकसित होता है जो एसोफैगस के अंदर होती है। एसोफैगल कैंसर एसोफैगस में कहीं भी हो सकता है। अमूमन ऐसा देखा गया है कि महिलाओं की तुलना में यह पुरुषों को अधिक प्रभावित करता है।
कैसे विकसित होता है एसोफैगल कैंसर (How Does Esophageal Cancer Develop)
एसोफैगस सबसे ऊपरी खाने की नली है जो गर्दन से शुरू होती है। यह खाने को पेट तक पहुंचाती है। इसमें कैंसर एक द्रव्यमान की तरह विकसित होता है जिसमें अनियंत्रित वृद्धि होती है। इससे नली में रुकावट आने लगती है। दरअसल यह आम कैंसर में से एक है और इसके विकसित होने के स्पष्ट कारण ज्ञात नहीं है। अपनी प्रारंभिक अवस्था में यह बहुत धीमी गति से बढ़ता है। इस स्टेज में यह कैंसर ग्रास नली की अस्तर कोशिकाओं की सतही परतों में होता है। दूसरे चरण में यह कैंसर एसोफैगस अस्तर की गहरी परतों तक पहुंच जाता है और पास की ग्रंथियों जैसे लिम्फ नोड्स में फैल जाता है। कैंसर की तीसरी स्टेज में यह एसोफैगस की दीवार और आसपास के ऊतकों या लिम्फ नोड्स की गहरी परतों में फैल जाता है। इसके बाद यह शरीर के अन्य हिस्सों में फैलने लगता है।
एसोफैगल कैंसर के प्रकार (Types of Esophageal Cancer)
आमतौर पर एसोफैगल कैंसर को दो भागों में विभाजित किया जाता है। यह विभाजन कोशिकाओं के प्रकार के अनुसार किया जाता है। इसके अलावा भी एसोफैगल कैंसर अन्य प्रकार के हो सकते है।
एडेनोकार्सीनोमा: कैंसर का यह प्रकार एसोफैगस में म्यूकस सिक्रीटिंग ग्लैंड्स की कोशिकाओं में विकसित होता है। एडेनोकार्सीनोमा अक्सर एसोफैगस के निचले भाग में होता है।
स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा: स्क्वैमस कोशिकाएं फ्लैट पतली कोशिकाएं होती है जो एसोफैगस की सतह को रेखांकित करती है। यह एसोफैगस के बीच में स्थित होता है। यह एसोफैगल कैंसर में सबसे प्रचलित कैंसर है। इसके अलावा एसोफैगल कैंसर में कोरिओकार्सीनोमा, लिम्फोमा, मेलेनोमा , सरकोमा आदि प्रकार के कैंसर भी शामिल होते है।
एसोफैगल कैंसर के लक्षण? (Symptoms of Esophageal Cancer)
आमतौर से एसोफैगल कैंसर के शुरुआती चरणों में कोई स्पष्ट लक्षण नहीं दिखाई देते है। इस प्रकार के कैंसर के विकसित होने पर सबसे पहले रोगी को निगलने में कठिनाई का अनुभव होता है। जैसे-जैसे ट्यूमर विकसित होता है यह अन्नप्रणाली के मुंह को संकुचित करता है जिससे निगलना मुश्किल या दर्दनाक होने लगता है। एसोफैगल कैंसर के सबसे आम लक्षण इस प्रकार है।
- खाने-पीने को निगलने में परेशानी होना
- गले या पीठ में दर्द होना
- ब्रेस्टबोन के पीछे और कंधे के ब्लेड के बीच में दर्द होना
- खून की उल्टी या खांसी होना
- पेट में जलन होना
- आवाज़ बैठना या पुरानी खांसी विकसित होना
- वजन कम होना
- छाती में दर्द, दबाव या जलन होना
- अपच की बढ़ती समस्या या सीने में जलन होना
एसोफैगल कैंसर के कारण (Causes Of Esophageal Cancer)
एसोफैगल कैंसर के सबसे आम कारण इस प्रकार है।
- शराब का सेवन
- धूम्रपान करना
- एसिड रिफ्लक्स यानी एसिड भाटा होना
- बैरेट एसोफैगस इसमें खाने की नली का अस्तर नष्ट होने लगता है जिसमें एसिडिटी की समस्या ज्यादा होती है।
- वजन बढ़ने लगता है
- स्वस्थ भोजन न करना
- बहुत गर्म तरल पदार्थ पीना
- सीने के ऊपरी पेट में रेडिएशन का प्रभाव
- एकैल्शिया की समस्या होने पर इसके होने संभावना बढ़ जाती है
- गैस्ट्रोसोफेजियल रीफ्लक्स बीमारी
एसोफैगल कैंसर का निदान (Diagnosis of Esophagal Cancer)
एसोफैगल कैंसर का निदान आमतौर पर निम्नलिखित परीक्षणों के द्वारा किया जा सकता है।
एंडोस्कोपी (Endoscopy): आमतौर पर फ्लेक्सिवक ट्यूब की मदद से एंडोस्कोपी की जाती है। यह एक लचीली ट्यूब है जिसके एक सिरे में कैमरा होता है और पहला सिरा मरीज के मुंह में डाला जाता है। एंडोस्कोपी के बाद मरीज नॉर्मल दिनों की तरह ही कार्य कर सकता है। यह एक बहुत ही साधारण परीक्षण होता है।
बायोप्सी (Biopsy): बायोप्सी कैंसर का प्रकार जानने के लिए किया जाता है। इसमें ऊतक का नमूना एकत्र करने के लिए विशेष स्कोप का उपयोग किया जाता है। कैंसर कोशिकाओं की जांच के लिए ऊतक नमूना प्रयोगशाला में भेजा जाता है। इससे डॉक्टर ट्यूमर के साइज का पता लगा लेते है। दरअसल इसमें एंडोस्कोपी की मदद से कैंसर के सेल्स का छोटा टुकड़ा लिया जाता है और इसका परीक्षण किया जाता है।
सीटी स्कैन (CT Scan): सीटी स्कैन की मदद से कैंसर का स्टेज और इसकी गंभीरता का पता लगाने की कोशिश की जाती है। आमतौर पर इससे यह पता लगाया जाता है कि मरीज का कौन-कौन सा क्षेत्र कैंसर से प्रभावित हुआ है।
पीईटी सीटी (PET CT): इस परीक्षण के माध्यम से कैंसर की स्टेज का पता लगाया जाता है। इसमें मरीज को इंजेक्शन दिया जाता है और इस आधार पर ही इनका इलाज किया जाता है।
एसोफैगल कैंसर से बचाव (Prevention of Esophageal Cancer)
एसोफैगल कैंसर से बचाव के लिए निम्नलिखित तौर-तरीके अपनाएं जा सकते है।
- धूम्रपान व तम्बाकू के सेवन से दूर रहें
- हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं
- नियमित रूप से व्यायाम करें
- खाने में फल और सब्जियों का सेवन करें
- वजन को मैनेज रखें
- समय-समय पर अपनी जांच करते रहें
एसोफैगल कैंसर का इलाज (Treatment Of Esophagal Cancer)
अगर एसोफैगल कैंसर का निदान शुरुआती अवस्था में ही हो जाता है तो इसका इलाज आसानी से किया जा सकता है। विशेषज्ञों की माने तो तीन स्टेज तक इस कैंसर का इलाज संभव है। शुरुआती स्टेज में डॉक्टर सर्जरी की सिफारिश करते है। सर्जरी के साथ-साथ कीमोथेरेपी और रेडिएशन थेरेपी भी कर सकते है। इससे मरीज का इलाज पूरी तरह से किया जा सकता है, जिसके बाद मरीज को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है।
सर्जरी (Surgery): कैंसर को हटाने के लिए सर्जरी अकेले या अन्य उपचारों के साथ की जा सकती है। छोटे ट्यूमर को हटाने के लिए सर्जरी की जाती है। यदि ट्यूमर बहुत छोटा है व आपके एसोफैगस की सतही परतों तक सीमित है और फ़ैला नहीं है तो सर्जन कैंसर और उसके आस-पास के टिशूज़ को हटा सकते है। बहुत ही शुरुआती चरण के कैंसर के लिए सर्जरी आपके एसोफैगस में एक एंडोस्कोप का उपयोग करके की जा सकती है। एसोफैगस को हटाने के लिए सर्जरी दो तरीकों से की जा सकती है। पहला बड़े चीरों से खुली प्रक्रिया के रूप में और दूसरा कई छोटे चीरों के माध्यम से डाले गए सर्जरी उपकरणों के साथ लैप्रोस्कोपी द्वारा।
कीमोथेरपी (Chemotherapy): कीमोथेरेपी में कैंसर की कोशिकाओं को मारने के लिए रसायनों का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर कीमोथेरेपी की दवाओं का उपयोग एसोफैगल कैंसर से ग्रस्त लोगों में सर्जरी से पहले या सर्जरी के बाद किया जाता है। कीमोथेरेपी विकिरण चिकित्सा यानी रेडिएशन के साथ भी जोड़ी जा सकती है। जिन लोगों का कैंसर ग्रास नली से आगे फैल गया होता है उन्हें लक्षणों से छुटकारा दिलाने के लिए कीमोथेरेपी की जा सकती है।
रेडिएशन थेरेपी (Radiation Therapy): रेडिएशन थेरेपी में कैंसर (cancer) की कोशिकाओं को मारने के लिए उच्च शक्ति वाली ऊर्जा का उपयोग किया जाता है। यह थेरेपी बाहर से भी की जा सकती है और शरीर के अंदर भी की जा सकती है। आमतौर पर यह कैंसर से पीड़ित लोगों के इलाज में कीमोथेरेपी के साथ की जाती है। इसका इस्तेमाल सर्जरी से पहले या बाद में किया जा सकता है। रेडिएशन थेरेपी का उपयोग बढ़े हुए एसोफैगल कैंसर की जटिलताओं से छुटकारा पाने के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है।
पोषण प्रदान करना: यदि आपको खाना निगलने में परेशानी हो रही है या आपकी सर्जरी हो रही है तो डॉक्टर एक फीडिंग ट्यूब लगा देते है। फीडिंग ट्यूब पोषण को सीधे आपके पेट या छोटी आंत में पहुंचाती है जिससे कैंसर के उपचार के बाद एसोफैगस को ठीक होने का समय मिल जाता है। इसके अलावा यदि एसोफैगल कैंसर ने एसोफैगस को संकुचित कर दिया है तो सर्जन एसोफैगस खोलने हेतु स्टेंट रखने के लिए एक एंडोस्कोप और विशेष उपकरणों का उपयोग कर सकता है।