मलेरिया शब्द इटालियन भाषा "माला एरिया" से बना है जिसका मतलब होता है बुरी हवा। यह एक ऐसा रोग है जिसमे रोगी को सर्दी और सिर दर्द के साथ-साथ कभी तेज़ तो कभी हल्का बुखार बार-बार आता है। यह एनोफ़िलेज़ मादा मच्छर के काटने से होता है। आमतौर से इस प्रजाति के मच्छर बारिश के मौसम में अधिक होते है। मलेरिया के कारण अनेकों लोगो को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। इस बुखार की एक विशेष बात यह है कि यह कभी कम हो जाता है तो कभी ज्यादा हो जाता है। मलेरिया अफ्रीका और एशिया के ज्यादातर देशों में होता है। हमारे देश में तो इसके रोगी पुरे साल देखने को मिलते है। लेकिन बरसात के मौसम में इसका इंफेक्शन ज्यादा फैल जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार मलेरिया के दक्षिण पूर्व एशिया में कुल 77% मामले भारत में होते है। भारत में गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, गोवा, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और पूर्वोत्तर राज्यों में अधिक देखने को मिलता है। मलेरिया को दलदली बुखार के रूप मे भी जाना जाता है। इसका सबसे पुराना वर्णन चीन में 2700 ईसा पूर्व से मिलता है। 1880 में मलेरिया का सबसे पहला अध्ययन चार्ल्स लुई अल्फोंस लैवेरन द्वारा किया गया था।
मलेरिया की गंभीरता को आप ऐसे समझ सकते है कि सन 2021 में दुनिया की लगभग आधी आबादी को मलेरिया होने का ख़तरा था। उस साल दुनिया भर में मलेरिया के तकरीबन 247 मिलियन मामले सामने आए थे। 2021 में ही मलेरिया से तकरीबन 619,000 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इन मौतों में 80 प्रतिशत मौतें पांच साल से कम उम्र के बच्चों की हुई थी। मलेरिया प्लाज्मोडियम नामक परजीवी के कारण होता है।
आमतौर से मलेरिया के लक्षण संक्रमित मच्छरों के काटने के सात दिनों बाद से विकसित होते है। अगर किसी को मलेरिया के मच्छर ने काटा है तो उसके लक्षण सात से अट्ठारह दिनों के बीच विकसित होना शुरू होते है। कई मामलों में और भी अधिक समय लग सकता है। मलेरिया के प्रारंभिक लक्षण फ्लू की तरह है। ये लक्षण अक्सर हल्के होते है और कभी-कभी इन्हें मलेरिया के रूप में पहचानना मुश्किल होता है। इसके सबसे प्रमुख लक्षण इस प्रकार है।
-इसमें बुखार चढ़ता है
-सिर दर्द होता है
-पसीना आता है
-ठंड लगती है
-उल्टी आती है
-मांसपेशियों में दर्द होता है
-दस्त होते है
मलेरिया होने पर पीड़ित व्यक्ति को कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। अगर इसका उचित इलाज नहीं किया जाता है तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते है। इसके कारण सांस लेने की समस्या भी हो सकती है। इसके अलावा मलेरिया की वजह से एनीमिया, सेरेब्रल मलेरिया और मधुमेह (डॉयबटीज) भी हो सकती है। कई पीड़ित व्यक्ति इसके कारण कोमा में चले जाते है व कई की मृत्यु भी हो जाती है।
मलेरिया विभिन्न प्रकार की प्लाज्मोडियम की प्रजातियों के कारण होता है। यह कई प्रकार का होता है लेकिन इसके सबसे प्रमुख प्रकार निम्नलिखित है।
प्लास्मोडियम फैल्सीपेरम: इसमें गंभीर मलेरिया बुखार होता है जिससे मरीज की म्रत्यु भी हो सकती है। इससे पीड़ित रोगियों को मालूम ही नहीं चलता है की वो क्या बोल रहे है। इसमें तेज़ ठण्ड लगती है और सिर दर्द और उल्टियां होती है। इसमें क्वाडीटियन मलेरिया उत्पन्न होता है जो अधिकांश दिन के समय में आक्रमण करते है।
प्लास्मोडियम विवैक्स: मलेरिया का यह सबसे आम प्रकार है। अधिकतर लोगों में इसी प्रकार के मलेरिया बुखार को देखा जाता है। यह बिनाइन टर्शियन मलेरिया उत्पन्न करता है जो प्रत्येक तीसरे दिन अर्थात 48 घंटों के बाद दोबारा होता है। ये प्रजाति उष्णकटिबंधीय एवं शीतोष्ण क्षेत्रों में ज्यादा पाई जाती है। इसमें कमर, सिर, हाथ, पैरों में दर्द, भूख न लगना, कंपकंपी के साथ तेज बुखार आता है।
प्लास्मोडियम मलेरी: यह क्वार्टन मलेरिया उत्पन्न करता है जिसमें मरीज को हर चौथे दिन बुखार आता है। जब किसी व्यक्ति को ये रोग होता है तो उसके यूरिन से प्रोटीन जाने लगता है जिसके कारण शरीर में प्रोटीन की कमी हो जाती है और सूजन आने लगती है।
प्लाज्मोडियम नॉलेसी: यह दक्षिण पूर्व एशिया में पाया जाने वाला एक प्राइमर मलेरिया परजीवी है। इसमें ठंड के साथ बुखार आता है व सिर दर्द के साथ-साथ भूख नहीं लगती है।
प्लास्मोडियम ओवेल: यह बिनाइन टर्शियन मलेरिया उत्पन्न करता है।
मलेरिया प्लास्मोडियम परजीवी जो कि मादा मच्छर एनोफेलीज़ के काटने से होता है। जब ये किसी व्यक्ति को काटती है तो उसके खून में मलेरिया के रोगाणु फैल जाते है। ये परजीवी हीमोजॅाइन टॅाक्सिन को मानव शरीर में उत्पादित करता है। लिवर के पहुंचने तक ये काफी संख्या में बढ़ जाते है। जैसे ही लिवर की कोशिका फटती है तो ये रोगाणु व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाओं में पहुंच जाते है और फिर इनकी संख्या में वृद्धि हो जाती है। लाल रक्त कोशिकाओं पर हमला करने से ये नष्ट हो जाती है और फट जाती है। फिर ये रोगाणु दूसरी लाल रक्त कोशकाओं पर हमला करते है और ये सिलसिला इस तरह से चलता रहता है। जब-जब लाल रक्त कोशिका फटती है व्यक्ति में मलेरिया के लक्षण नज़र आते है। मलेरिया के परजीवी लाल रक्त कोशिकाओं को प्रभावित करते है इसलिए लोग इन्फेक्टेड ब्लड के संपर्क में आकर मलेरिया से पीड़ित हो सकते है जैसे माता से अजन्मे बच्चे को मलेरिया हो सकता है। इन्फेक्टेड ब्लड चढाने से मलेरिया हो सकता है। इन्फेक्टेड व्यक्ति को दिए गए इंजेक्शन से दूसरे व्यक्ति को इंजेक्ट करने से भी मलेरिया हो सकता है।
मलेरिया संक्रामक बीमारी नहीं है। यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं होता है। यह यौन संचारित भी नहीं होता है। संक्रमित लोगों के साथ संपर्क से आपको मलेरिया नहीं हो सकता है।
मलेरिया से बचने का सबसे अच्छा तरीका है कि मच्छरों को पनपने ही न दे। मलेरिया की हवा होने पर घर के अंदर रहे। सोते समय मच्छरदानी का उपयोग करें। ऐसे कपडे पहनें जो आपके शरीर के अधिकांश भाग को ढक सके। डीईईट या पिकारिदिन युक्त कीट से बचाने वाली क्रीम का प्रयोग ज़रूर करें। ये त्वचा पर सीधे लगाईं जाती है। इसके अलावा कपड़ों पर परमेथ्रिन लगाएं।
आमतौर पर मलेरिया का इलाज करने के लिए ऐंटिमलेरियल ड्रग्स, बुखार को नियंत्रित करने की दवाएं, ऐंटिसीज़र दवाएं, लिक्विड ड्रिंक्स और इलेक्ट्रोलाइट्स आदि का उपयोग किया जाता है। दरअसल मलेरिया के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं का प्रकार रोग की गंभीरता और क्लोरोक्विन प्रतिरोध की संभावना पर निर्भर करता है। मलेरिया के इलाज के लिए विभिन्न प्रकार की दवाओं जैसे क्विनीन, मेफ्लोक्विन, डॉक्सीसाइक्लिन आदि का प्रयोग किया जाता है। फाल्सीपेरम मलेरिया से ग्रस्त लोगों के लक्षण सबसे गंभीर होते है। इससे पीड़ित रोगी का इलाज आईसीयू में भर्ती करके किया जाता है। इससे सांस लेने में दिक्कत, कोमा और किडनी फेलियर हो सकती है। प्रेग्नेंट महिलाओं में क्लोरोक्विन का इस्तेमाल मलेरिया के लिए अच्छा इलाज माना जाता है। इसके अलावा क्विनीन और क्लिंडामाइसिन का इस्तेमाल भी किया जा सकता है।
इनके अलावा मलेरिया का इलाज किस प्रकार का परजीवी, पीड़ित व्यक्ति की उम्र आदि पर भी निर्भर करता है। आमतौर पर मलेरिया के इलाज के लिए डॉक्टर कई तरह की दवाओं का इस्तेमाल करते है। इनमे कुछ इस प्रकार है।
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