किडनी हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। यह हमारे शरीर में कई काम करती है। यह हमारे शरीर से विषैले पदार्थों को छानकर बाहर निकालने का काम करती है। ये सभी हानिकारक तत्व हमारे ब्लैडर में इकट्ठा होते है और पेशाब के माध्यम से बाहर निकल जाते है। इसके अलावा किडनी सोडियम, पोटैशियम और पीएच लेवल को संतुलित करती है। ये ऐसे हार्मोन का निर्माण करती है जो हमारे ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करते है और लाल रक्त कणिकाएं के उत्पादन में मदद करती है। साथ ही साथ ये हमारे शरीर में विटामिन डी को सक्रिय करती है जिससे हमारी हड्डियां कैल्शियम को अवशोषित करती है। अगर किडनी सही से काम नहीं करती है तो हमारे शरीर की क्षमता न के बराबर रह जाती है। जिसके परिणामस्वरूप कई गंभीर समस्याओं का सामना हमें करना पड़ सकता है। इन दिनों किडनी से जुड़ी बीमारियां काफी आम हो गई है। इसके अनेक कारण हो सकते है।
किडनी की बीमारी को साइलेंट किलर के रूप में भी जाना जाता है। जिसकी वजह यह है कि लाखों लोग किडनी की कई तरह की बीमारियों से पीड़ित होते है और उन्हें इसका पता ही नहीं होता। दरअसल किडनी ख़राब होने के लक्षण इतने हल्के होते है कि ज्यादातर लोगों को इसके गंभीर रूप लेने तक इसका अनुभव नहीं होता है। जब किडनी ख़राब हो जाती है और यह शरीर से विषाक्त पदार्थों को फिल्टर नहीं कर पाती है। जिसकी वजह से हमारे शरीर के अंदर जहर बनने लगता है और रोगी की स्तिथि गंभीर रूप ले लेती है। तब जाकर इस बीमारी के बारे मे पता लग पाता है।
किडनी ख़राब होने से पहले हमारा शरीर में कई लक्षण नजर आते है। लेकिन हम इन लक्षणों की तरफ ध्यान नहीं देते है। जिसका नतीजा यह होता है कि सही समय पर इसका इलाज नहीं होता है और अनेकों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है। आईये जानते है किडनी ख़राब होने के क्या लक्षण होते है। आमतौर पर इसके सबसे प्रमुख लक्षण निम्नलिखित है।
पैरों में सूजन होना किडनी ख़राब होने का सबसे प्रमुख लक्षण है। दरअसल किडनी हमारे शरीर से अपशिष्ट और अतिरिक्त सोडियम को फिल्टर करने में मदद करती है। जब किडनी अपना काम ठीक से करना बंद कर देती है तो शरीर में सोडियम जमा होने लगता है। जिसकी वजह से पिंडलियों और टखनों में सूजन बढ़ जाती है। इसे एडिमा के रूप में भी जाना जाता है। वैसे तो टॉक्सिक किडनी में आंखों और चेहरे में सूजन देखी जाती है लेकिन इसके लक्षण सबसे ज्यादा हाथ, पैर और टखनों को प्रभावित करते है।
किडनी ख़राब होने का एक प्रमुख लक्षण है भूख का न लगना। हमारे शरीर में विषाक्त पदार्थों और वेस्ट का संचय भूख को कम कर देता है। इसकी वजह से कई बार वजन भी तेज़ी से घटने लगता है। किडनी ख़राब होने पर मतली और उल्टी भी हो सकती है इस कारण भी भूख कम लगती है। पीड़ित व्यक्ति को हर समय पेट भरा हुआ होने का अनुभव होता रहता है। कुछ भी खाने-पीने का मन नहीं करता है। यह किडनी ख़राब होने का एक खतरनाक लक्षण है जिस पर अधिकतर लोगों का ध्यान नहीं जाता है।
त्वचा में सूखापन और खुजली का होना किडनी ख़राब होने का एक प्रमुख लक्षण है। आमतौर पर ऐसा तब होता है जब किडनी शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सक्षम नहीं होती है। जिसकी वजह से ये विषाक्त पदार्थ हमारे रक्त में जमा होने लगते है। इससे हमारी त्वचा में खुजली और सूखापन हो जाता है। कई मामलों में यह इतना गंभीर हो जाता है कि इससे बदबू तक आने लगती है।
किडनी ख़राब होने का एक लक्षण यह भी है कि इससे हमें हर समय कमजोरी और थकान का अनुभव होने लगता है। आमतौर पर यह लक्षण तब अनुभव होता है जब हमारी किडनी ख़राब होना शुरू होती है। जैसे -जैसे किडनी की बीमारी गंभीर होती जाती है पीड़ित व्यक्ति और भी ज्यादा कमजोर और थका हुआ महसूस करता है। एक ऐसी भी स्तिथि आ जाती है कि पीड़ित व्यक्ति को चलने-फिरने में भी दिक्कत होने लगती है। कमज़ोरी और थकान किडनी में विषाक्त पदार्थों के जमा होने के कारण होती है।
किडनी ख़राब होने पर व्यक्ति को बार-बार पेशाब लगता है। एक सामान्य स्वस्थ व्यक्ति दिन में सात से आठ बार पेशाब करता है। अगर इससे ज्यादा बार कोई पेशाब करता है तो समझ लीजिए कि उसकी किडनी ख़राब हो रही है। अमूमन ऐसा भी देखा गया है कि किडनी ख़राब होने पर कई व्यक्तियों को बहुत कम पेशाब आता है। ये दोनों ही स्थिति किडनी को नुकसान पहुंचाती है। कुछ लोगों की पेशाब में खून भी आता है। ऐसा इसलिए होता क्योकि किडनी ख़राब होने के कारण रक्त सेल्स पेशाब में रिसने लगते है।
किडनी के ख़राब होने का एक लक्षण यह भी है कि पीड़ित व्यक्ति को विशेषकर सुबह-सुबह मिचली और उल्टी आती है। इससे व्यक्ति की भूख भी कम होती जाती है। किडनी के ख़राब होने के अंतिम चरण में मरीज को बार-बार मिचली और उल्टी आती है।
किडनी ख़राब होने पर हीमोग्लोबिन का स्तर गिरना शुरू हो जाता है। जिससे पीड़ित व्यक्ति पीला दिखने लगता है। यह किडनी की बीमारी की सामान्य जटिलताओं में से एक है। इससे कमजोरी और थकान भी होती है व एरिथ्रोपोइटिन और लोहे का स्तर कम हो जाता है।
किडनी ख़राब होने पर पेशाब में अत्यधिक झाग आते है। जो पेशाब में प्रोटीन के बहने से होते है। कई बार पेशाब के माध्यम से खून भी आता है। इस स्तिथि में पेशाब का रंग, स्थिरता या प्रकृति में परिवर्तन किडनी ख़राब होने के लक्षण हो सकते है।
किडनी ख़राब होने के शुरूआती चरण में पीठ, बाजू या पसलियों के नीचे दर्द हो सकता है। इसके अलावा पेट के निचले हिस्से में भी दर्द हो सकता है।
किडनी ख़राब होने का एक लक्षण उच्च रक्तचाप भी हो सकता है। जैसे-जैसे किडनी ख़राब होती है शरीर में सोडियम और पानी जमने लगते है जिससे उच्च रक्तचाप होता है।
किडनी ख़राब होने के शुरुआत में ही अगर इसका उचित इलाज किया जाएं तो इसे पूरी तरह ख़राब होने से रोका जा सकता है। उच्च रक्तचाप, शुगर और कोलेस्ट्रॉल से पीडि़त लोगों की किडनी के जल्दी ख़राब होने का जोखिम सबसे ज्यादा रहता है। इन रोगों से पीड़ित लोगों को अपने स्वास्थ्स पर नजर बनाए रखनी चाहिए। आमतौर से किडनी ख़राब होने पर उसका इलाज निम्नलिखित तरीके से किया जा सकता है।
हेमोडायलिसिस में फिल्टर का इस्तेमाल करके रक्त में मौजूद अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को शरीर से बाहर निकाला जाता है। इसके द्वारा ब्लड प्रेशर के स्तर को नियंत्रित रखकर रक्त में आवश्यक मिनरल्स जैसे कैल्शियम, पोटेशियम, सोडियम और बाइकार्बोनेट की मात्रा को संतुलित किया जाता है। इस प्रक्रिया को करते समय रक्त को छानने के लिए वाहिकाओं में एक एक्सेस पॉइंट बनाया जाता है। इसके बाद एक अलग फिल्टर की मदद से रक्त को शरीर में वापस ले जाया जाता है। हालांकि हेमोडायलिसिस किडनी फेलियर की समस्या को ठीक नहीं कर सकता है लेकिन यह रोगी को राहत प्रदान करता है।
इस प्रक्रिया में रक्त को फिल्टर करने और अपशिष्ट पदार्थों को खत्म करने के लिए बेली लाइनिंग का उपयोग किया जाता है। इसमें पेट के पेरिटोनियम अस्तर की मदद से शरीर से विषाक्त अपशिष्ट और अतिरिक्त तरल पदार्थ को छाना जाता है। इलाज शुरू करने से पहले ही आमतौर पर डॉक्टर पेट में एक ट्यूब डालता है जिसे कैथेटर ट्यूब कहा जाता है। यह ट्यूब मरीज के पेट में ही रहती है। इलाज के दौरान एक डायलिसिस सॉल्यूशन बैग को ट्यूब के माध्यम से पेट में स्थानांतरित किया जाता है। यह घोल मरीज के शरीर में रहता है और जहरीले रसायनों व अतिरिक्त तरल पदार्थ को सोखता है। कुछ समय बाद डायलिसिस का घोल ट्यूब या कैथेटर के जरिए शरीर से बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया जाता है।
किडनी की इस सर्जिकल प्रक्रिया में ख़राब हुई किडनी के स्थान पर स्वस्थ किडनी को लगाया जाता है। यह नई किडनी या तो किसी मृत व्यक्ति से या फिर किसी जीवित व्यक्ति से ली जाती है। प्रत्यारोपित किडनी को सर्जन द्वारा उदर क्षेत्र के निचले हिस्से में लगाया जाता है और धमनी से जोड़ा जाता है।
आमतौर पर इस प्रक्रिया में दवाओं का प्रयोग किया जाता है। इसमे किडनी ख़राब होने के कारणों जैसे एनीमिया की स्थिति आदि का इलाज करने के लिए डायलिसिस को न करके दवाओं के द्वारा उसे प्रबंधित करने की कोशिश की जाती है।
1. किडनी की बीमारी के लक्षण क्या है?
पैरों में सूजन, कमज़ोरी, भूख न लगना, नींद न आना, त्वचा में सूखापन व खुजली, बार-बार पेशाब आना, मिचली और उल्टी, एनीमिया, पेशाब में झाग या रक्त का आना, पीठ या पेट के निचले हिस्से में दर्द होना, उच्च रक्तचाप आदि किडनी की बीमारी के लक्षण है।
2. किडनी ख़राब होने का पहला संकेत क्या होता है?
उच्च रक्तचाप शायद किडनी ख़राब होने का पहले संकेत होता है।
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