डेंगू बुखार एक गंभीर बीमारी है जो एडीज मच्छर के काटने से फैलता है। एडीज मच्छर डेंगू वायरस को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में स्थानांतरित कर देता है। जब भी एडीज मच्छर किसी डेंगू पीड़ित व्यक्ति का रक्त चूसता है तो वह डेंगू वायरस को अपने शरीर में संचित कर लेता है। इसके बाद जब वह दूसरे व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति के शरीर में डेंगू वायरस प्रवेश कर जाता है। इस तरह मच्छर डेंगू वायरस का वाहक बन जाता है और बीमारी को फैलाता है। डेंगू वायरस में चार अलग-अलग सीरोटाइप शामिल है और यह फ्लेवीवायरिडी (Flaviviridae) परिवार का हिस्सा होता है। संक्रमित मच्छर द्वारा काटने पर वायरस रक्त में प्रवेश करता है और कई लक्षणों का कारण बनता है। आमतौर पर डेंगू के लक्षण संक्रमण होने के तीन से दस दिन में बीच में दिखाई देते है। अगर इस बुखार का उचित इलाज नहीं होता है तो यह गंभीर रूप ले लेता है। हर साल कई लोगों की मौत डेंगू बुखार के कारण होती है। डेंगू बुखार होने पर प्लेटलेट की संख्या कम हो जाती है ।
डेंगु बुखार आमतौर पर एडीज मच्छर के काटने से प्रसारित होता है जो डेंगू वायरस को एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैलाते है। यह वायरस मच्छर के शरीर में प्रवेश करता है और "एक्सट्रिंसिक इन्क्यूबेशन पीरियड" प्रक्रिया के माध्यम से फ़ैल जाता है। इससे वायरस को प्रसारणशील बनने में दस दिन तक का समय लग सकता है। तापमान वायरस के प्रकार और प्रारंभिक वायरल संघटन की धारावाहिकता जैसे एक्सट्रिंसिक इन्क्यूबेशन पीरियड की अवधि पर प्रभाव डाल सकते है। एक बार जब मच्छर संक्रामक हो जाता है तो वह अपने पूरे जीवन के लिए वायरस को प्रसारित कर सकता है। संक्रमित व्यक्ति के आसपास रहने से डेंगू बुखार नहीं होता है।
जिन व्यक्तियों के रक्त में डेंगू का वायरस होता है। जब उन्हें मच्छर काटते है तो वे संक्रमित हो जाते है। इन लक्षणों के विकसित होने से दो दिन पहले और बुखार कम होने के दो दिन बाद तक संचरण हो सकता है। जिन लोगों के रक्त में वायरस का स्तर ज़्यादा होता है और तेज बुखार होता है उनमें मच्छरों के संक्रमित होने का खतरा सबसे अधिक होता है। विशिष्ट एंटीबॉडी वाले व्यक्तियों में वायरस को मच्छरों तक पहुंचने का जोखिम कम होता है। इसके अलावा एक गर्भवती मां से उसके बच्चे में संक्रमण फ़ैल सकता है। डेंगू रक्त पदार्थों, अंग दान करने से भी प्रसारित हो सकता है हालांकि ऐसे मामले बहुत कम देखने को मिलते है।
डेंगू बुखार होने पर कई तरह के लक्षण दिखाई देते है। आमतौर पर डेंगू के लक्षण संक्रमण होने के तीन से दस दिन के बीच में दिखाई देते है। अगर कोई व्यक्ति सही समय में इसके लक्षणों को पहचानकर इसका उचित इलाज करा लेता है तो वह गंभीर स्थिति से अपने आप को बचा सकता है। डेंगू के सबसे सामान्य लक्षण इस प्रकार है।
तेज़ सिर दर्द होना
जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द होना
सूजी हुई लिम्फ ग्रंथियां
जी मिचलाना
उल्टी आना
खुजली व थकान होना
आँखों के पिछले हिस्से में दर्द होना
इसके अलावा कुछ व्यक्तियों का वज़न तेज़ी से कम होता है और उनके मल, पेशाब, मसूड़ों, नाक या उल्टी में रक्त आ सकता है।
डेंगू के निदान के लिए डॉक्टर कई तरह के परीक्षण कर सकते है। आमतौर पर इसके निदान के लिए निम्नलिखित तौर-तरीकों का प्रयोग किया जाता है।
डेंगू NS1 एंटीजन परीक्षण: यह टेस्ट डेंगू वायरस के NS1 की जांच करता है। डेंगू के लक्षणों के शुरुआती दौर में यह परीक्षण बहुत उपयोगी है। इसके अलावा एंटीबॉडी परीक्षण किए जाते है।
आईजीएम एंटीबॉडी परीक्षण: यह जांच कुछ एंटीबॉडीज यानी संक्रमण से लड़ने वाले अणु की तलाश करती है जो शरीर में डेंगू बुखार के होने पर बनाता है। यह लक्षणों के विकसित होने के तीन से पांच दिन बाद पॉजिटिव आता है।
आरटी-पीसीआर परीक्षण: आरटी-पीसीआर परीक्षण का मतलब है रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन-पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन। यह डेंगू वायरस की आनुवांशिक सामग्री की पहचान करने के लिए किया जाता है। यह परीक्षण बीमारी के शुरुआती दौर में किया जाता है। इसके अलावा गंभीर रोगियों के लिए डॉक्टरों विभिन्न प्रकार के ब्लड टेस्ट और रेडियोलॉजी इमेजिंग परीक्षण का सुझाव दे सकते है।
लिवर फंक्शन परीक्षण (LFT): इस टेस्ट में सीरम बिलीरुबिन, उच्च ट्रांसएमिनेस, और सीरम एल्ब्यूमिन के स्तर की जांच की जाती है। यह जांच लिवर के फ़ैल होने के लक्षणों को पहचानने में मदद करती है जो डेंगू संक्रमण के कारण हो सकती है।
रीनल फंक्शन परीक्षण (RFT): इसमें सीरम क्रिएटिनिन स्तर की जांच की जाती है। यह जांच विभिन्न गुर्दे की बीमारियों के कारण होने वाली समस्याओं को पहचानने में मदद करती है। छाती का एक्स-रे: यह परीक्षण प्ल्यूरल इफ्यूजन यानी फेफड़ों में पानी का भरना और पेरिकार्डियल इफ्यूजन यानी दिल के चारों ओर तरल पदार्थ का इकट्ठा होना की जांच करने के लिए किया जाता है।
इलैक्ट्रोकार्डियोग्राफी (ECG): यह डेंगू संक्रमण से दिल की गतिविधियों की जांच करने के लिए किया जाता है। कई मरीजों में डेंगू संक्रमण के कारण पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट की असामान्यताओं के कारण ईसीजी पर असामान्यताएं देखी जाती है।
अल्ट्रासाउंड एब्डोमेन: डेंगू बुखार के कारण होने वाली सेरोसाइटिस, पेट में तरल पदार्थ, पित्ताशय की थैली में सूजन, पेरिकोलसिस्टिक द्रव, जलोदर जैसी स्थितियों की जांच करने के लिए किया जाता है।
2डी इकोकार्डियोग्राफी (2D Echo): यह दिल की मांसपेशियों की जांच के लिए की जाती है। गंभीर डेंगू बुखार दिल को संरचनात्मक और कार्यात्मक रूप से प्रभावित करता है। डेंगू वायरस के संक्रमण से होने वाली कार्डियक जटिलताओं में स्व-सीमित अतालता से लेकर गंभीर मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन तक अलग-अलग होते है जिससे हाइपोटेंशन, पल्मोनरी एडिमा और कार्डियोजेनिक शॉक होता है।
डी-डाइमर: डी-डाइमर प्रोटीन का टुकड़ा होता है जो शरीर में रक्त के थक्कों के घुलने पर उत्पन्न होता है। डेंगू संक्रमण से रक्त में डी-डाइमर का स्तर बढ़ सकता है और इसके परिणामस्वरूप शरीर में दर्द, सीने में तेज दर्द, तेज बुखार, सांस लेने में परेशानी हो सकती है।
फाइब्रिनोजेन परीक्षण: फाइब्रिनोजेन एक रक्त प्रोटीन होता है जो लीवर में उत्पन्न होता है और रक्त के थक्कों को जमने में मदद करता है। इसकी कमी के कारण रक्त का थक्का जमना मुश्किल हो जाता है। गंभीर डेंगू रोगियों में अत्यधिक रक्तस्राव हो सकता है इसलिए डॉक्टर आपके फाइब्रिनोजेन स्तरों की जांच के लिए इस परीक्षण का उपयोग करते है।
फाइब्रिन डिग्रेडेशन उत्पाद परीक्षण (FDP): यह रक्त का परीक्षण है जिसका उपयोग एफडीपी स्तरों की जांच के लिए किया जाता है। एफडीपी रक्त में थक्कों के घुलने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होते है। गंभीर वायरस के के कारण एफडीपी स्तरों में वृद्धि हो सकती है जो प्राथमिक या द्वितीयक फाइब्रिनोलिसिस के संकेत के रूप में देखा जा सकता है।
अभी तक भी डेंगू बुखार के लिए कोई विशेष दवा उपलब्ध नहीं है। इसके लक्षणों के आधार पर इसके इलाज के लिए विभिन्न तौर-तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल इसका इलाज रोगी की गंभीरता पर निर्भर करता है। आमतौर पर इसका इलाज करने के लिए निम्नलिखित तौर-तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है।
दर्द निवारक दवाएं: आमतौर पर डेंगू में तेज बुखार के साथ-साथ बेचैनी होती है। पेरासिटामोल जैसी दवाएं बुखार को कम करती है और दर्द या बेचैनी को कम कर सकती है।
प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन: डेंगू बुखार गंभीर होने पर प्लेटलेट काउंट में महत्वपूर्ण गिरावट आती है। प्लेटलेट के स्तर को फिर से नार्मल करने के लिए प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन आवश्यक हो सकता है। इससे शरीर को थक्का जमाने में मदद मिलती है और रक्तस्राव रुकता है।
हाइड्रेट रहें: अगर कोई डेंगू बुखार से पीड़ित है तो उसके लिए ज़रूरी है कि वह हर समय हाइड्रेटेड रहें। पानी और इलेक्ट्रोलाइट्स वाले पेय लगातार पीते रहना चाहिए। हाइड्रेट रहने से आपका शरीर वायरस से अच्छी तरह लड़ पाता है।
आराम करें: डेंगू होने पर रोगी को भरपूर आराम करने की सलाह दी जाती है। आराम करने से शरीर को डेंगू वायरस से लड़ने पर ध्यान केंद्रित करने और ताकत हासिल करने में मदद मिलती है। इसके अलावा डेंगू बुखार में मतली, उल्टी और दस्त जैसे लक्षण हो सकते है। उचित द्रव संतुलन और इलेक्ट्रोलाइट स्तर बनाए रखना महत्वपूर्ण है। डॉक्टर (Doctor)आपको हाइड्रेटेड रखने और शरीर के संतुलन को बनाए रखने के लिए अंतःशिरा (IV) तरल पदार्थ लेने की अनुशंसा कर सकते है।
डेंगू बुखार के लक्षण क्या है?
आमतौर पर डेंगू बुखार होने पर रोगी को तेज बुखार के साथ-साथ तेज़ सिर दर्द होता है। इसके अलावा जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द होता है। कमजोरी व थकान होती है, जी मचलाता है, उल्टी आती है व खुजली होती है।
डेंगू कितने दिन में ठीक हो जाता है?
आमतौर पर डेंगू के लक्षण संक्रमण होने के तीन से दस दिन में बीच में दिखाई देते है। एक स्वस्थ व्यक्ति इलाज शुरू होने के दस दिन के अंदर ठीक हो जाता है। कई मामलों में अधिक समय भी लग सकता है।
डेंगू का पता कैसे चलता है?
डेंगू का निदान करने के लिए डॉक्टर कई तरह के परीक्षण कर सकते है। आमतौर पर कई प्रकार के रक्त का परीक्षण, डेंगू NS1 एंटीजन परीक्षण के साथ-साथ गंभीर मामलों में एंटीबॉडी परीक्षण, LFT, RFT, 2D Echo आदि परीक्षण किए जा सकते है।
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