गर्भावस्था के दौरान मां बनने वाली स्त्री को कई गंभीर दौर से गुज़रना पड़ता है। यह ऐसा समय होता है जब कुछ न कुछ जटिलता होने की आशंका हमेशा रहती है। कई बार ऐसा होता है गर्भ तो ठहर जाता है लेकिन उसका विकास उचित प्रकार से नहीं हो पाता है। इस स्थिति को भ्रूण वृद्धि प्रतिबंध (एफजीआर) के रूप में भी जाना जाता है। इसमें अजन्मा बच्चा (भ्रूण) उचित रूप से विकसित नहीं हो पाता है। इसे अक्सर 10वें प्रतिशतक से कम अनुमानित वजन के रूप में वर्णित किया जाता है। इसका मतलब यह है कि एक ही जेस्टेशनल एज यानी गर्भाशय का समय 10 में से 9 बच्चों का वजन जितना होता है भ्रूण का वजन उससे कम होता है। एफजीआर गर्भावस्था के दौरान किसी भी समय शुरू हो सकता है। इस स्थिति में बच्चे का विकास ठीक से नहीं हो पाता है। एफजीआर के कारण भ्रूण के आकार, अंगों, ऊतकों और कोशिकाओं का विकास प्रभावित होता है। इससे कई प्रकार की समस्याएं हो सकती है। लेकिन बहुत से नवजात शिशुओं को किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती है। दरअसल गर्भावस्था बेहद संवेदनशील दौर होता है। इसमें बहुत बारीकी से गर्भवती महिला के शरीर के हर संकेत को समझना ज़रूरी होता है। जब तक बच्चा जन्म नहीं ले लेता हर स्तिथि पर ध्यान देने की ज़रूरत होती है। गर्भ मे बच्चें के विकास न होने पर कई तरह की समस्याएं हो सकती है। सबसे आम प्रकार की समस्याएं इस प्रकार है।
गर्भ के ठहरने के बाद गर्भावस्था की पहली तिमाही में डॉक्टर डॉप्लर की मदद से बच्चे के दिल की धड़कने सुनता है। आमतौर पर 9 से 10 सप्ताह के बाद बच्चे की दिल की धड़कन सुनाई देने लगती है और बच्चा एम्ब्रायो से फिटस में बदल जाता है। बच्चे की स्थिति और प्लेसमेंट की वजह से कई बार बच्चे के दिल की धड़कनें नहीं सुनाई देती है।
गर्भावस्था के दौरान थोड़ा रक्त स्राव होना सामान्य होता है। अधिक रक्त स्राव से गर्भपात का खतरा हो सकता है। बहुत सी महिलाओं को स्पॉटिंग या हल्की ब्लीडिंग होती है जिसमे घबराने की ज़रूरत नहीं है। अगर रक्त में लार्ज क्लॉट्स आने लगे तो यह भ्रूण को नुकसान का खतरा होता है। इस स्तिथि में थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
ह्यूमन कोरियोनिक गोनाडोट्रोपिन एक प्रेगनेंसी हार्मोन होता है जो सिर्फ गर्भवती महिलाओं में ही विकसित होता है। इस हार्मोन की वजह से होम प्रेग्नेंसी टेस्ट के दौरान परिणाम सकारात्मक होते है। हालांकि एचसीजी का स्तर गर्भावस्था के दौरान कम-ज्यादा होता रहता है लेकिन जब सामान्य से नीचे होता है तो यह चिंता का कारण हो सकता है।
गर्भावस्था के दौरान वेजाइनल डिस्चार्ज होना सामान्य होता है। दरअसल स्राव में एम्नियोटिक फ्लूड भी होता है जो बच्चे को गर्भ में बचा कर रखता है। फ्लूड का स्राव बढ़ना इस बात का संकेत है कि एम्नियोटिक फ्लूड का थैला टूट गया है और भ्रूण की वृद्धि बंद हो गई है। इससे बच्चे को नुकसान पहुच सकता है।
कई बार अल्ट्रासाउंड में गड़बड़ी भी हो सकती है इसलिए जल्दबाज़ी में कोई भी फैसला न लें। पहली तिमाही में ही अल्ट्रासाउंड किया जाता है जिसमे बच्चे की पोजिशन, आकार और विकास की जांच की जाती है। अगर अल्ट्रासाउंड में बच्चे की गतिविधि सही नहीं होती है तो यह भी हो सकता है कि वह अल्ट्रासाउंड में गड़बड़ी के कारण हो सकती है। ऐसी स्थिति मे दूसरी जगह से अल्ट्रासाउंड कराना बेहतर रहता है।
गर्भावस्था में बच्चे का विकास न होने की कई वजह हो सकती है। आमतौर पर इस परेशानी में प्लेसेंटा या गर्भनाल की समस्याएं शामिल हो सकती है। कई बार प्लेसेंटा अच्छी तरह से अटैच नहीं हो पाता है या गर्भनाल से जो रक्त का प्रवाह होता है वह सीमित मात्रा में होता है। आमतौर पर गर्भ में बच्चे के विकास में बाधा निम्नलिखित की वजह से हो सकती है।
- उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रेशर या दिल व रक्त वाहिका रोग होने के कारण इस समस्या का होना आम है। इसके अलावा यह समस्या
- मधुमेह यानी डायबिटीज होने पर हो सकती है।
- एनीमिया यानी लाल रक्त कोशिकाएं कम होने पर हो सकती है।
- लंबे समय तक फेफड़े या गुर्दे का रोग होने के कारण हो सकती है।
- ऑटोइम्यून विकार होने पर हो सकती है।
- रूबेला, साइटोमेगालोवायरस, टोक्सोप्लाज्मोसिस और सिफलिस जैसे संक्रमण होने पर हो सकती है।
- मालन्यूट्रिशन होने पर हो सकती है।
- हीमोग्लोबिन असामान्य होने पर हो सकती है।
- वजन कम होने पर हो सकती है।
- वजन अधिक होने पर हो सकती है।
- आहार सही न होने पर हो सकती है।
- शराब, धूम्रपान व नशीली दवाओं का सेवन करने से हो सकती है
इसके अलावा भी गर्भ में बच्चे के विकास में बाधा के कुछ अन्य कारक भी हो सकते है जैसे
- गर्भ में जुड़वा बच्चे होने की स्थिति में
- इन्फेक्शन होने पर
-जन्म दोष और दिल की समस्या होने पर
- जीन या गुणसूत्र की समस्या होने पर भी एफजीआर की परेशानी हो सकती है।
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