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पैरालिसिस जिसे लकवा व पक्षाघात के रूप में भी जाना जाता है एक गंभीर प्रकार की बीमारी है। गांव-देहातों में इस बीमारी को हवा का असर के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में मांसपेशियों की क्रियाविधि प्रभावित होती है
पैरालिसिस जिसे लकवा व पक्षाघात के रूप में भी जाना जाता है एक गंभीर प्रकार की बीमारी है। गांव-देहातों में इस बीमारी को हवा का असर के नाम से भी जाना जाता है। इस बीमारी में मांसपेशियों की क्रियाविधि प्रभावित होती है। लकवा के होने पर शरीर के किसी एक भाग की मांसपेशियां काम नहीं करती है। दरअसल इस अवस्था में लकवा से ग्रस्त व्यक्ति एक से ज्यादा मांसपेशियों को हिलाने में असमर्थ होता है।आमतौर पर ऐसी स्थिति तब उत्पन्न होती है जब मांसपेशियों और मस्तिष्क के बीच संचार सुचारू रूप से नहीं हो पाता है। लकवा शरीर के किसी एक अंग या पूरे शरीर को भी प्रभावित कर सकता है। इसका मतलब यह है कि लकवा किसी एक मांसपेशी या समूह को प्रभावित कर सकता है या शरीर के बड़े क्षेत्र यहां तक कि पुरे शरीर को भी प्रभावित कर सकता है। दरअसल यह सब उसके कारणों पर निर्भर करता है। स्ट्रोक, सिर में चोट, रीढ़ की हड्डी में चोट और मल्टीपल स्क्लेरोसिस आदि लकवा के मुख्य कारणों में से है।
कुल मिलाकर लकवा एक घातक बीमारी है जिसमें शरीर के एक हिस्से की मांसपेशियां काम करना बंद कर देती है। जब व्यक्ति के मस्तिष्क में अचानक से खून की आपूर्ति रुक जाती है या ब्लड कोशिकाएं फट जाती है और रक्त स्राव होने लगता है तो लकवा हो सकता है। लकवा शरीर के एक क्षेत्र में या पूरे शरीर में भी हो सकता है यानी शरीर के एक तरफ या दोनों तरफ हो सकता है।
लकवा कई प्रकार के होते है। आमतौर पर इसे बीमारी से प्रभावित अंगों के आधार पर समझ सकते है। इसके सबसे आम प्रकार निम्नलिखित है।
मोनोप्लेजिया: इस प्रकार के लकवे में शरीर का कोई एक अंग जैसे पैर या बांह प्रभावित होता है।
हेमिप्लेजिया: इस प्रकार के लकवे में शरीर का एक तरफ का हिस्सा प्रभावित होता है। इसमें एक तरफ का हाथ, पैर, पेट, कंधा, सीना प्रभावित होता है।
पैराप्लेजिया: इस तरह के लकवा में शरीर का निचला हिस्सा प्रभावित होता है। शरीर के निचले हिस्से का मतलब कमर से नीचे का भाग होता है। आमतौर पर इसमें दोनों पैर प्रभावित होते है।
कार्डियो प्लाजा: कार्डियो प्लाजा को टेट्राप्लेजिया के रूप में भी जाना जाता है। लकवे की इस स्थिति में शरीर की चारों भुजा यानी दोनों बांह और दोनों पैर प्रभावित होते है।
बेल्स पाल्सी: आमतौर पर जब शरीर के किसी अंग की मांसपेशियां काम करना बंद कर देती है तो उस स्थिति को पाल्सी कहते है। इस स्तिथी में चेहरे की मांसपेशियां प्रभावित होती है। इससे प्रभावित होने वाले पीड़ित व्यक्ति का मुंह अक्सर टेढ़ा हो जाता है। जिसकी वजह से पीड़ित व्यक्ति को बोलने और खाने-पीने में परेशानी होने लगती है।
आमतौर पर लकवा के लक्षण उसके प्रकार और गंभीरता पर निर्भर करते है। इसके लक्षणों को आसानी से पहचाना जा सकता है। इससे पीड़ित व्यक्ति को अपने शरीर के प्रभावित अंग का महसूस होना बंद हो जाता है। अमूमन ऐसा भी होता है कि किसी अंग को लकवा ग्रस्त होने से पहले उसमें सुन्न या झुनझुनी जैसे संकेत दिखाई देने लगते है। इसके होने से प्रभावित हिस्सों की मांसपेशियों पर नियंत्रण खत्म हो जाता है। लकवा शरीर के एक तरफ या दोनो तरफ के अंगों को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा यह शरीर के ऊपरी हिस्से और निचले हिस्से को भी प्रभावित कर सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि कई बार लकवा आंखों को छोड़कर पूरे शरीर को प्रभावित कर देता है। लकवा होने पर आमतौर से निम्नलिखित लक्षण दिखाई दे सकते है।
-मांसपेशियों में ऐंठन व दर्द होने लगता है।
-मांसपेशियों में कमजोरी होने लगती है।
-मुंह से लार गिरने लगती है।
-सिर दर्द होता है।
-सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है।
-चेहरे के एक तरफ का हिस्सा कमज़ोर हो जाता है।
-देखने और सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
-व्यवहार में बदलाव हो जाता है।
-सांस लेने में परेशानी होती है।
दरअसल लकवा विभिन्न कारणों से हो सकता है। अलग-अलग व्यक्तियों में यह अलग-अलग वजहों से होता है। इसमें शरीर स्थायी या अस्थायी रूप से अपंग हो जाता है। अमूमन ऐसा देखा गया है कि यह रीढ़ की हड्डी में किसी प्रकार की चोट या क्षति के कारण यह होता है। इसके अलावा भी इसके अनेक कारण हो सकते है। इसके सबसे आम कारण इस प्रकार है।
-किसी प्रकार का अटैक या स्ट्रोक होने के बाद लकवा की संभावनाएं बढ़ जाती है।
-पोलियो होने पर भी लकवा हो सकता है।
-अगर हड्डी, पीठ या सिर में चोट लग जाती है तो इससे लकवा होने की संभावना होती है।
-ट्रामा होने पर भी लकवा हो सकता है।
-मल्टीपल स्केलेरोसिस भी लकवा का एक अहम कारण है।
-हाइपोकैलीमिया से भी लकवा हो सकता है।
-शरीर के एक हिस्से जैसे हाथ या हाथ-पैर दोनों में कमजोरी होने पर लकवा हो सकता है।
-गर्दन में चोट लगने से लकवे की संभावना कई गुना बढ़ जाती है।
-ऑटोइम्यून रोग से पीड़ित व्यक्ति को लकवा होने की संभावना रहती है।
-पार्किंसन्स रोग से पीड़ित रोगियों को आमतौर पर लकवा हो सकता है।
आमतौर पर लकवा का इलाज उसके अंतर्निहित कारणों और लक्षणों के आधार पर किया जाता है। वास्तविकता यह है कि अगर किसी व्यक्ति में लकवा स्थायी हो चुका है तो उसका ईलाज नहीं किया जा सकता। हां यह जरूर है कि मशीनी उपकरणों की मदद से मरीज के जीवन को आसान बनाया जा सकता है। ज्यादातर मामलों में लकवा का इलाज पूरी तरह संभव नहीं है लेकिन इसके लक्षणों को काफी हद तक मैनेज किया जा सकता है। कुछ मामलों में जब लकवा टांग और भुजाओं को प्रभावित कर देता है तब न्यूरो प्रोस्थेसिस उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। यह विद्युत धाराओं की मदद से मांसपेशियों को उत्तेजित करता है जिससे मरीज लकवाग्रस्त अंगों से कुछ गतिविधियां कर पाता है।
- कई मामलों में सर्जरी करके लकवाग्रस्त अंग को अलग कर दिया जाता है।
- शारीरिक थेरेपी करके भी इसके लक्षणों को प्रबंधित किया जा सकता है।
- विभिन्न प्रकार की थेरेपी से भी लकवा के रोगियों को मदद मिल सकती है।
- चलने फिरने में मदद करने वाले उपकरण जैसे व्हीलचेयर, ब्रेसिस, मोबाइल स्कूटर आदि जैसे उपकरणों का प्रयोग करके रोगी को फायदा हो सकता है।
- कुछ विशेष प्रकार की दवाएं जैसे बोटॉक्स और दर्द निवारक गोलियां व ऐंठन का इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवाइयों का प्रयोग भी किया जा सकता है।
लकवा के इलाज के कुछ देसी नुस्खे भी काफी कारगार साबित हुए है। जैसे गिली मिट्टी का लेप लकवा में बहुत उपयोगी माना जाता है। आप नियमित रूप से लकवा रोगियों में गिली मिट्टी का लेप लगा सकते है। मिट्टी का लेप लगाने के बाद मरीज को कटि स्नान करना जरूरी होता है। यह उपाय लकवा मरीज के लिए बहुत लाभकारी साबित होता है। लकवा से ग्रसित अंगों में ऑयल लगाने से भी फायदा हो सकता है। लकवा में करेला बहुत ही फायदेमंद माना जाता है। ऐसे में मरीज को करेले की सब्जी या करेले के जूस का सेवन करना चाहिए। यह शरीर के प्रभावित अंगों में सुधार करता है। इसके अलावा तुलसी और दही का मिश्रण स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी होता है। लकवा में आप तुलसी के पत्ते, दही और सेंधा नमक को बराबर मात्रा में मिलाएं और एक तरह का लेप तैयार करें। इसके बाद उस लेप को आप लकवा ग्रसित अंग पर लगाएं और मालिश करें। ऐसा करने से लकवा के रोगियों को बहुत आराम मिलता है। लकवा में काली मिर्च भी फायदेमंद होती है। एक चम्मच काली मिर्च पीसकर रख लें और उसमें तीन चम्मच देसी घी मिलाएं। इसे अच्छे से मिलाने के बाद लेप तैयार कर लें और इस लेप को लकवा वाले अंग पर लगाएं। इससे प्रभावित अंगों में सुधार होता है।
1. लकवा का मुख्य कारण क्या है?
दरअसल लकवा तब होता है जब मांसपेशियों और मस्तिष्क के बीच संचार सुचारू रूप से नहीं हो पाता है। इस स्थिति में मस्तिष्क में अचानक से खून की आपूर्ति रुक जाती है या ब्लड कोशिकाएं फट जाती है और रक्त स्राव होने लगता है तो लकवा हो सकता है।
2. लकवा किसकी कमी से होता है?
आमतौर पर नर्वस सिस्टम यानी तंत्रिका तंत्र में आई कमियों के कारण लकवा होता है ।
3. लकवा के लक्षण क्या है?
अंगों में सुन्न या झुनझुनी होना, मांसपेशियों में ऐंठन, दर्द व कमजोरी होना, लार गिरना, सिर दर्द होना, चेहरे का झुक जाना, सोचने-समझने, देखने और सुनने की क्षमता कम होना, सांस लेने में परेशानी होना आदि लकवा के लक्षण है।
4. लकवा कितने दिनों में ठीक होता है?
आमतौर पर लकवा के साधारण लक्षण होने पर छह महीने के अंदर-अंदर रिकवरी होना शुरू हो जाता है। लेकिन अभी तक भी स्थाई लकवा का इलाज संभव नहीं है।
5. लकवा से बचने के लिए क्या खाना चाहिए?
लकवा से बचने के लिए हरी सब्जियां , पत्ता गोभी, ब्रोकली, अनार, फालसा, अंगूर, सेब, पपीता, संतरा, चेरी, तरबूज, मछली,अंडा, बादाम, अखरोट, पिस्ता, काजू, नारियल पानी आदि का सेवन फायदेमंद रहता है।
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